स्वास्थ्य

हीमोफीलिया: पाँच दुर्लभ और खतरनाक जटिलताएँ, जिनसे अब भी अनजान हैं लोग

 

सहारनपुर। हीमोफीलिया को अक्सर एक रक्तस्राव संबंधी समस्या के रूप में पहचाना जाता है, जिसमें मामूली चोट भी लंबे समय तक खून बहने और आसानी से चोट या नीले निशान पड़ने का कारण बनती है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह रोग केवल सतही रक्तस्राव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके कई ऐसे छिपे हुए और दुर्लभ पहलू हैं, जो समय रहते पहचाने न जाएँ तो जानलेवा साबित हो सकते हैं।

नई दिल्ली स्थित बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के हीमैटो ऑन्कोलॉजी एवं बीएमटी विभाग के वाइस चेयरमैन डॉ. धर्मा चौधरी ने बताया कि हीमोफीलिया से जुड़ी पहली गंभीर जटिलता कम्पार्टमेंट सिंड्रोम है। इसमें मांसपेशी के भीतर रक्तस्राव होने से दबाव बढ़ता है और यह नसों व ऊतकों को स्थायी क्षति पहुँचा सकता है। हल्की चोट भी इस स्थिति को जन्म दे सकती है।

इसके बाद दूसरी स्थिति हीमोफीलिक स्यूडोट्यूमर है। इसमें हड्डियों या नरम ऊतकों में बार-बार रक्तस्राव होने से गांठ जैसी संरचना बनने लगती है, जो हड्डियों को नुकसान पहुँचा सकती है। कई मामलों में इसका इलाज केवल ऑपरेशन या रेडियोथेरेपी से ही संभव होता है।

तीसरी गंभीर जटिलता मस्तिष्क में रक्तस्राव है, जो बिना किसी चोट के भी हो सकता है। इसके लक्षणों में सिरदर्द, उल्टी, दौरे और व्यवहार में बदलाव शामिल हैं। समय पर इलाज न होने पर यह स्थायी न्यूरोलॉजिकल क्षति या मौत का कारण भी बन सकता है।

डॉ. धर्मा चौधरी के अनुसार चौथी समस्या इनहिबिटर का विकास है। इसमें मरीज का शरीर क्लॉटिंग फैक्टर को निष्क्रिय करने वाले एंटीबॉडी बना लेता है, जिससे सामान्य इलाज असरहीन हो जाता है। ऐसे मामलों में विशेष और महंगे उपचार विकल्पों की ही आवश्यकता पड़ती है।

अंतिम और दीर्घकालिक जटिलता क्रॉनिक जॉइंट डिज़ीज़ (हीमोफीलिक आर्थ्रोपैथी) है। बार-बार रक्तस्राव से जोड़ों में स्थायी क्षति होती है, जिससे दर्द, चलने-फिरने में कठिनाई और अंततः विकलांगता तक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। गंभीर मामलों में जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी तक की जरूरत पड़ती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि हीमोफीलिया केवल बाहरी रक्तस्राव तक सीमित नहीं है। इसके इन दुर्लभ पहलुओं की समय रहते पहचान और इलाज ही मरीज के जीवन को सुरक्षित बना सकते हैं। नियमित जांच, शीघ्र निदान और विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीमवर्क से इन खतरों को काफी हद तक रोका जा सकता है।

जागरूकता और सतर्कता ही हीमोफीलिया मरीजों के जीवन की सबसे बड़ी ढाल है।

 

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