सीपी राधाकृष्णन बने देश के नए उपराष्ट्रपति
एनडीए उम्मीदवार ने 152 वोटों से दर्ज की जीत, विपक्षी प्रत्याशी सुदर्शन रेड्डी को दी मात

नई दिल्ली। एनडीए उम्मीदवार और महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन देश के नए उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। आज हुए मतदान में उन्हें कुल 452 वोट मिले, जबकि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले। इस तरह राधाकृष्णन ने 152 मतों के अंतर से जीत दर्ज की।
उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल 767 सांसदों ने मतदान किया, जिनमें से 752 वोट वैध और 15 वोट अवैध पाए गए। मतदान का प्रतिशत 98 फीसदी रहा। मतगणना शाम छह बजे शुरू हुई और देर शाम नतीजे घोषित किए गए।
परिणाम आने के बाद पराजित प्रत्याशी बी. सुदर्शन रेड्डी ने कहा—
“मैं नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन को शुभकामनाएं देता हूं। परिणाम मेरे पक्ष में नहीं आया, लेकिन वैचारिक लड़ाई और जोश के साथ जारी रहेगी।”
पीएम मोदी ने किया सबसे पहले मतदान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले संसद भवन में बने मतदान केंद्र पर वोट डाला। उनके साथ केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू, अर्जुन राम मेघवाल, जितेंद्र सिंह और एल. मुरुगन भी मतदान के लिए पहुंचे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा, सपा नेता राम गोपाल यादव, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने भी मतदान किया।
92 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा व्हीलचेयर पर वोट डालने पहुंचे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी हाथों में हाथ डाले मतदान केंद्र तक पहुंचे। जेल में बंद सांसद इंजीनियर रशीद ने भी मतदान किया।
दोनों उम्मीदवार दक्षिण भारत से
यह चुनाव उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से दिए गए इस्तीफे के बाद हुआ। खास बात यह रही कि इस बार दोनों उम्मीदवार दक्षिण भारत से थे। राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं और ओबीसी वर्ग की गौंडर जाति से संबंध रखते हैं, जबकि रेड्डी तेलंगाना से हैं।
सीपी राधाकृष्णन का राजनीतिक करियर लंबा रहा है। वह 1998 और 1999 में कोयंबटूर से लोकसभा सांसद चुने गए थे। जुलाई 2024 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया। राज्यपाल रहते हुए उन्होंने राजनीतिक विवादों पर सार्वजनिक बयान देने से परहेज किया, जिससे उनकी संतुलित छवि बनी रही।