ईयूडीआर से लकड़ी हस्तशिल्प निर्यातकों को खतरा, सरकार से हस्तक्षेप की मांग

दिल्ली/एनसीआर, । लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यातकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव से मुलाकात कर यूरोपीय संघ के वन विनाश नियमों (ईयूडीआर) पर गंभीर चिंता व्यक्त की और भारत सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।
ईपीसीएच के उपाध्यक्ष सागर मेहता के नेतृत्व में हुए इस प्रतिनिधिमंडल में तन्मय कुमार, सचिव (एमओईएफसीसी); सुशील कुमार अवस्थी, महानिदेशक वन; ईपीसीएच सीओए सदस्य हंसराज बाहेती; नरेश बोथरा, अध्यक्ष, जोधपुर हस्तशिल्प निर्यातक संघ; मोहम्मद औसाफ, महासचिव, सहारनपुर वुड कार्विंग मैन्युफैक्चर एसोसिएशन; आर. के. वर्मा, कार्यकारी निदेशक, ईपीसीएच; राजेश रावत, अतिरिक्त कार्यकारी निदेशक; सचिन राज, संयोजक, एनसीसीएफ; अनवर अहमद और रौनक पारख जैसे प्रमुख निर्यातक शामिल रहे।
बैठक में निर्यातकों ने बताया कि ईयूडीआर के सख्त अनुपालन से लकड़ी के हस्तशिल्प निर्यात को गंभीर नुकसान हो सकता है, जबकि भारत के काष्ठ हस्तशिल्प आम, बबूल और शीशम जैसी कृषि वानिकी पर आधारित लकड़ी से बनते हैं, जिनका वनों की कटाई से कोई संबंध नहीं है।
ईपीसीएच अध्यक्ष नीरज खन्ना ने कहा कि अगर यूरोपीय नियम बिना संदर्भगत बदलाव के लागू किए गए तो बड़े पैमाने पर ऑर्डर रद्द होंगे और कारीगरों व एमएसएमई उद्यमों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा।
सागर मेहता ने सरकार से अंतर-मंत्रालयी समिति बनाने, डिजिटल ट्रेसेबिलिटी प्रणाली विकसित करने, राष्ट्रीय लकड़ी पोर्टल शुरू करने और कृषि वानिकी आधारित लकड़ी से बने हस्तशिल्प को छूट देने की मांग की।
जोधपुर से हंसराज बाहेती ने कहा कि यह नियम सूक्ष्म, लघु और कारीगर आधारित उद्यमों के लिए गंभीर संकट खड़ा करेंगे, जबकि ये वनों की कटाई में शामिल ही नहीं हैं।
आर. के. वर्मा ने बताया कि साल 2024-25 में हस्तशिल्प का कुल निर्यात ₹33,123 करोड़ रहा, जिसमें काष्ठ हस्तशिल्पों का हिस्सा ₹8,524.74 करोड़ था। अकेले यूरोपीय संघ को किए गए निर्यात का मूल्य ₹2,591.29 करोड़ रहा।
इस मुलाकात के दौरान मंत्री भूपेंद्र यादव ने निर्यातकों की समस्याओं को गंभीरता से सुना और समाधान पर आश्वासन दिया