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कब तक बचाने आएंगे भगवान राम और शिवाजी, हर हिंदू को उठानी होगी जिम्मेदारी: मोहन भागवत

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मंगलवार को विज्ञान भवन में आयोजित ‘आरएसएस की 100 वर्ष यात्रा: नए क्षितिज’ विषयक कार्यक्रम में समाज को एकता और जिम्मेदारी उठाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि देश को बचाने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है, केवल भगवान राम या शिवाजी जैसे महान व्यक्तित्वों पर निर्भर रहना उचित नहीं।

भागवत ने कहा कि विविधता ही भारत की असली शक्ति है और इसी में एकता का सूत्र छिपा है। उन्होंने कहा, “हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते। विविधता, एकता का ही परिणाम है। हमारा डीएनए एक है और सद्भावना से रहना हमारी संस्कृति है।”

समाज परिवर्तन और प्रगति पर जोर

आरएसएस प्रमुख ने स्पष्ट किया कि संघ का लक्ष्य देश को विश्वगुरु बनाना है और इसके लिए सामाजिक परिवर्तन अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी भारत वह दर्जा हासिल नहीं कर सका जो उसे मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा, “अगर हमें देश का उत्थान करना है तो यह किसी एक पर काम छोड़ देने से नहीं होगा। हर किसी को अपनी भूमिका निभानी होगी। नेताओं, सरकारों और राजनीतिक दलों की भूमिका इस प्रक्रिया में सहयोग करने की है।”

भेदभाव भारतीय संस्कृति में नहीं

भागवत ने कहा कि भारतीयों ने प्राचीन काल से ही लोगों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया है। उन्होंने कहा, “हिंदू अपने मार्ग पर चलने और दूसरों का सम्मान करने में विश्वास रखते हैं। वे किसी मुद्दे पर लड़ने में नहीं बल्कि समन्वय में विश्वास करते हैं। हिंदू शब्द बाहरी लोगों ने भारतीयों के लिए प्रयोग किया था, किंतु इसका अर्थ है – सबको साथ लेकर चलना।”

भगवान और महापुरुषों पर नहीं छोड़ी जा सकती जिम्मेदारी

भागवत ने राम और शिवाजी का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज की रक्षा और प्रगति की जिम्मेदारी पूरे समाज को उठानी होगी। उन्होंने कहा, “रावण से दुनिया त्रस्त थी। अगर राम न होते तो क्या होता। शिवाजी न होते तो क्या होता। लेकिन हर बार किसी एक पर ठेका देना सही नहीं है। देश हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।”


 

 

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